पंच गवय

पंचगव्य
चिकित्सा के अनुभूत प्रयोग अवश्य आजमाएं

प्राय: सभी को ज्ञात है कि गोमाता अपने पूरे जीवनकाल में दूध भले ही न देती हों लेकिन वह प्रतिदिन और जीवनपर्यंत दो पदार्थ देती है। एक गोमूत्र और दूसरा गोमय। यदि हम भारतीय नस्ल के गोवंश से नित्यप्रति प्राप्त हो रहे गोमूत्र और गोमय का उचित उपयोग बाजार में प्रचलित कर सकें तो गाय मात्र इन दो पदार्थो के कीमत पर ही संपूर्ण जीवन अपना और अपने से जुड़े परिवार का आर्थिक कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर देती है।
यहां पर संक्षेप में विभिन्न रोगों में हमारे द्वारा गोमूत्र की सहायता से चिकित्सा कार्य के अनुभूत प्रयोग वर्णित हैं। इन्हें ध्यान में लेने पर सहज ही समझा जा सकता है कि

गोमूत्र कितनी चमत्कारिक औषधि है।

गोमूत्र को रूमाल पर छिड़क कर उसे नियमित सूंघने से नजला और जुकाम के रोगियों को बहुत लाभ मिलता है।यदि बाल तेजी से झड़ रहें हों और रूसी खत्म नहीं हो रही हो तो बालों में तेल की तरह गोमूत्र को हल्के हाथों से अंदर तक लगाना चाहिए। लगभग एक घंटे तक उसे बालों में सूखने देना चाहिए और उसके बाद बालों को धो लेना चाहिए। कुछ ही दिनों में बालों का झड़ना रूक जाता है और रूसी भी जड़ से खत्म हो जाती है।चेहरे पर अगर झांई है तो गोमूत्र को चेहरे पर लगाकर थोड़ी देर बाद ताजे पानी से धो लेना चाहिए। इससे झांई मिटने लगती है और चेहरा खिल उठता है।गला खराब रहने पर, टांसिल आदि मुंह के रोगों में गोमूत्र का कुल्ला करने तथा गरारे करने से गले और मुंह के रोग दूर करने में सहायता मिलती है।दांतों में दर्द रहने पर गोमूत्र को थोड़ा गरम करके इसे थोड़ी देर तक मुंह में रखना चाहिए और हल्के गरम जल से कुल्ला कर लेना चाहिए। इससे दर्द से आराम हो जाता है।ह्दय रोगों में गोमूत्र के स्वर्णछार के द्वारा अर्जुन छाल के चूर्ण को गूंथकर गोली बना लेनी चाहिए। गोली बनाने के लिए कीकर की गोंद का प्रयोग करना चाहिए। इस गोली को प्रात: और सायं दो-दो गोली ताजे जल से भोजन के एक घण्टे पूर्व लेने से लाभ मिलता है।स्वर्णछार बनाने की विधि अत्यंत सरल है। गोमूत्र को तेज आंच पर पकाना चाहिए। जो झाग उबलते समय निकले उसे किसी पात्र की सहायता से तब तक निकालते रहना चाहिए जब तक कि गोमूत्र से झाग निकलना बंद न हो। फिर आंच से गोमूत्र उतारकर उसे ठण्ड़ा कर लेना चाहिए। इस प्रक्रिया में तलछट के रूप में यूरिया नीचे बैठ जाता है। गोमूत्र को सावधानी से निथार लेना चाहिए ताकि यूरिया उसके साथ ना निकलने पाए। इस प्रकार शोधित गोमूत्र ही स्वर्णछार कहा जाता है। इसमें से अमोनिया तत्व झाग के रूप में निकल जाता है।समस्त वात रोगों में गोमूत्र का सेवन लाभदायी है। निर्गुण्डी चूर्ण में कीकर की गोंद उचित मात्रा में मिलाकर उसे स्वर्णछार गोमूत्र से गूंथ लें। इस प्रकार गोली बनाकर उसका भोजन पूर्व सुबह और शाम सेवन करें। यह वात जनित व्याधियों में अनुभूत प्रयोग है।मधुमेह यानी शुगर के रोगी त्रिफलाचूर्ण को स्वर्णछार गोमूत्र में गूंथकर उसकी गोली बना लें। चार-चार गोली भोजन से पूर्व ताजे जल से लेने पर बहुत ही लाभ मिलता है।

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